10 Questions 10 Marks 6 Mins
फ्रांसीसी क्रांति फ्रांस में गहन राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल की अवधि थी जो 1788 में एस्टेट्स-जनरल के साथ शुरू हुई और नवंबर 1799 में फ्रांसीसी वाणिज्य दूतावास की नींव के साथ समाप्त हुई। इसकी कई अवधारणाओं को मूल उदार लोकतांत्रिक मूल्यों के रूप में माना जाता है। Important Points
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अत:, 1788 में राजा लुई XVI ने घोषणा की कि वह एस्टेट्स-जनरल का समाधान करेंगे। India’s #1 Learning Platform Start Complete Exam Preparation
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These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति. पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई? उत्तर: फ्रांस में क्रान्ति की शुरुआत निम्न परिस्थितियों में हुई- 1. राजनैतिक कारण-तृतीय स्टेट के प्रतिनिधियों ने मिराब्यो एवं आबेसिए के नेतृत्व में स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित कर इस बात की शपथ ली कि जब तक वे लोग सम्राट की शक्तियों को सीमित करने तथा अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों वाली सामंतवादी प्रथा को समाप्त करने वाला संविधान नहीं बना लेंगे तब तक राष्ट्रीय सभा को भंग नहीं करेंगे। राष्ट्रीय सभा जिस समय संविधान बनाने में व्यस्त थी, उस समय (UPBoardSolutions.com) सामंतों को विस्थापित करने के लिए अनेक स्थानीय विद्रोह हुए। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1774 ई. में ‘लुईस सोलहवाँ ‘ फ्रांस का राजा बना था। वह एक सज्जन परन्तु अयोग्य शासक था। राजा पर उसकी पत्नी ‘मैरी एंटोइनेट’ को भारी प्रभाव था। प्रांतीय प्रशासन दो भागों में बँटा हुआ था जिन्हें क्रमशः ‘गवर्नमेंट’ तथा ‘जनरेलिटी’ के नामों से जाना जाता था। फ्रांसीसी शासन में एकरूपता का अभाव था। देश के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कानून लागू थे। इसी बीच खाद्य संकट गहरा गया तथा जनसाधारण का गुस्सा गलियों में फूट पड़ा। 14 जुलाई को सम्राट ने सैन्य टुकड़ियों को पेरिस में प्रवेश करने के आदेश दिये। इसके प्रत्युत्तर में सैकड़ों क्रुद्ध पुरुषों एवं महिलाओं ने स्वयं की सशस्त्र टुकड़ियाँ बना लीं। ऐसे ही लोगों की एक सेना बास्तील किले की जेल (सम्राट की निरंकुश शक्ति का प्रतीक) में जा घुसी और उसको नष्ट कर दिया। इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति का प्रारंभ हुआ और व्यवस्था बदलने को आतुर लोग क्रांति में शामिल हो गए। 2. फ्रांस की आर्थिक परिस्थितियाँ-बूळू वंश का लुई सोलहवाँ 1774 में फ्रांस का राजा बना। उसने ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मैरी एंटोइनेट से विवाह किया। उसके सत्तासीन होने के समय फ्रांस का कोष रिक्त था। राज्य पर कर्ज का बोझ निरंतर बढ़ रहा था। राज्य की कर (UPBoardSolutions.com) व्यवस्था असमानता और पक्षपात के सिद्धांत पर निर्मित होने के कारण अत्यंत दूषित थी। कर दो प्रकार के थे- प्रत्यक्ष कर (टाइल) और धार्मिक कर (टाइद)। पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग जिनका फ्रांस की लगभग 40% भूमि पर स्वामित्व था, प्रत्यक्ष करों से पूर्ण मुक्त थे तथा अप्रत्यक्ष करों से भी प्रायः मुक्त थे। ऐसे समय में अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया। सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने जैसे अपने नियमित खर्च निपटाने के लिए सरकार कर बढ़ाने पर बाध्य हो गई। कर बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित करने के लिए फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 ई. को एस्टेट के जनरल की सभा बुलाई। प्रत्येक एस्टेट को सभा में एक वोट डालने की अनुमति दी गई। तृतीय एस्टेट ने इस अन्यायपूर्ण प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने सुझाव रखा कि प्रत्येक सदस्य का एक वोट होना चाहिए। सम्राट ने इंस अपील को ठुकरा दिया तथा तृतीय एस्टेट (UPBoardSolutions.com) के प्रतिनिधि सदस्य विरोधस्वरूप सभा से वाक आउट कर गए। फ्रांसीसी जनसंख्या में भारी बढ़ोत्तरी के कारण इस समय खाद्यान्न की माँग बहुत बढ़ गई थी। परिणामस्वरूप, पावरोटी (अधिकतर लोगों के भोजन का मुख्य भाग) के भाव बढ़ गए। बढ़ती कीमतों व अपर्याप्त मजदूरी के कारण अधिकतर जनसंख्या जीविका के आधारभूत साधन भी वहन नहीं कर सकती थी। इससे जीविका संकट उत्पन्न हो गया तथा अमीर और गरीब के मध्य दूरी बढ़ गई। 3. दार्शनिकों का योगदान- इस काल में फ्रांसीसी समाज में मांटेस्क्यू, वोल्टेयर तथा रूसो आदि विचारकों के विचारों के कारण तर्कवाद का प्रसार आरम्भ हुआ। इन विचारकों ने अपने साहित्य द्वारा पादरियों, चर्च की सत्ता तथा सामंती व्यवस्था की जड़ों को हिला दिया। अठारहवीं सदी के दौरान मध्यम वर्ग शिक्षित एवं धनी बन कर उभरा। सामंतवादी समाज द्वारा प्रचारित विशेषाधिकार प्रणाली उनके हितों के विरुद्ध थी। शिक्षित होने के कारण इस वर्ग के सदस्यों की पहुँच फ्रांसीसी एवं अंग्रेज राजनैतिक एवं सामाजिक दार्शनिकों (UPBoardSolutions.com) द्वारा सुझाए गए समानता एवं आजादी के विभिन्न-विचारों तक थी। ये विचार सैलून एवं कॉफीघरों में जनसाधारण के बीच चर्चा तथा वाद-विवाद के फलस्वरूप पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा लोकप्रिय हो गए। दार्शनिकों के विचारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जॉन लॉक, जीन जैक्स रूसो एवं मांटेस्क्यू ने राजा के दैवीय सिद्धान्त को नकार दिया। 4. सामाजिक परिस्थितियाँ- फ्रांस में सामंतवादी प्रथा प्रचलित थी, जो तीन वर्गों में प्रचलित थी। इन वर्गों को एस्टेट कहते थे। प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग आता था। इनका देश की 10% भूमि पर अधिकार था। द्वितीय एस्टेट में फ्रांस का कुलीन वर्ग सम्मिलित था। इनका देश की 30% भूमि पर अधिकार था। तृतीय एस्टेट में फ्रांस की लगभग 94% जनसंख्या आती थी। इस वर्ग में मध्यम वर्ग (लेखक, डॉक्टर, जज, वकील, अध्यापक, असैनिक अधिकारी आदि), किसानों, मजदूरों और दस्तकारों को सम्मिलित किया जाता था। यह (UPBoardSolutions.com) केवल तृतीय एस्टेट ही थी जो सभी कर देने को बाध्य थी। पादरी एवं कुलीन वर्ग के लोगों को सरकार को कर देने से छूट प्राप्त थी परन्तु सरकार को कर देने के साथ-साथ किसानों को चर्च को भी कर देना पड़ता था। यह एक अन्यायपूर्ण स्थिति थी जिसने तृतीय एस्टेट के सदस्यों में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया। 5. तात्कालिक कारण- लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 ई. को नए करों के प्रस्ताव हेतु 1614 ई. में निर्धारित संगठन के आधार पर तीनों एस्टेट की एक बैठक बुलाई। तृतीय एस्टेट की माँग थी कि सभी एस्टेट की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाए तथा ‘एक व्यक्ति एक मत’ के आधार पर मतदान कराया जाए। लुई सोलहवें ने ऐसा करने से मना कर दिया। अतः 20 जून को तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि टेनिस कोर्ट में एकत्रित हुए तथा नवीन संविधान बनाने की घोषणा की। प्रश्न 2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी? उत्तर: फ्रांसीसी क्रान्ति से सर्वाधिक लाभ तृतीय एस्टेट के धनी सदस्यों को हुआ। तृतीय एस्टेट में किसान, मजदूर, वकील, छोटे अधिकारीगण, अध्यापक, डॉक्टर एवं व्यवसायी शामिल थे। क्रांति से पहले इन्हें सभी कर अदा करने पड़ते थे। साथ ही इन लोगों को पादरियों और कुलीनों के द्वारा अपमानित भी किया जाता था। लेकिन क्रांति के बाद उनके साथ समाज के उच्च वर्ग के समान व्यवहार किया जाने लगा। (UPBoardSolutions.com) पादरियों एवं कुलीन वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को त्यागने पर विवश होना पड़ा। क्रान्ति के परिणामों से महिलाओं को निराशा हुई क्योंकि वे लैंगिक आधार पर पुरुषों की समानता का अधिकार हासिल नहीं कर सकीं। प्रश्न 3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई? उत्तर: इस क्रान्ति से विश्व के लोगों को निम्न विरासत प्राप्त हुई-
प्रश्न 4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है। उत्तर: ऐसे लोकतांत्रिक अधिकार जिनका हम आज सरलता से प्रयोग करते हैं तथा जिनका उद्भव फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप हुआ था, उनका विवरण इस प्रकार है-
प्रश्न 5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के सन्देश में नाना अंतर्विरोध थे? उत्तर: विश्व में नागरिक अधिकारों की प्रथम घोषणा का प्रयास संभवतः फ्रांस में ही किया गया। फ्रांस के सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के तीन मौलिक सिद्धान्तों पर बल दिया गया। वर्तमान में सभी लोकतांत्रिक देशों द्वारा इन सिद्धान्तों को अंगीकार (UPBoardSolutions.com) किया गया है।लेकिन यह सत्य है कि फ्रांस का सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश अनेक विरोधाभासों से घिरा हुआ है जिनका विवरण इस प्रकार है-
प्रश्न 6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है? उत्तर: नेपोलियन का उदय 1796 में निर्देशिका के पतन के बाद हुआ। निदेशकों का प्रायः विधान सभाओं से झगड़ा होता था जो कि बाद में उन्हें बर्खास्त करने का प्रयास करती। निर्देशिका राजनैतिक रूप से अत्यधिक अस्थिर थी; अतः नेपोलियन सैन्य तानाशाह के रूप में सत्तारूढ़ हुआ। सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट बना लिया। 1799 ई. में डायरेक्टरी के शासन का अंत करके वह फ्रांस का प्रथम काउंसल बन गया। शीघ्र ही शासन की समस्त शक्तियाँ उसके हाथों में केंद्रित हो गईं। सन् 1793-96 के मध्य फ्रांसीसी सेनाओं ने लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोप पर विजय हासिल कर ली। जब नेपोलियन माल्टा, मिस्र और सीरिया की ओर बढ़ा (1797-99) तथा इटली से फ्रांसीसियों को बाहर ढकेल दिया गया तब सत्ता पर नेपोलियन का कब्जा हुआ, फ्रांस ने अपने खोए हुए भूखण्ड पुनः वापस ले लिए। उसने आस्ट्रिया को 1805 में, प्रशा को 1806 में और रूस को 1807 में परास्त किया। समुद्र के ऊपर ब्रिटिश नौ सेना पर फ्रांसीसी अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर सके। अंततः लगभग सारे यूरोपीय देशों ने मिलकर 1813 ई. में लिव्जिंग (UPBoardSolutions.com) में फ्रांस को परास्त किया। बाद में इन मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने पेरिस (फ्रांस की राजधानी) पर अधिकार कर लिया। जून, 1815 ई. में नेपोलियन ने वाटरलू में पुनः विजय प्राप्त करने का असफल प्रयास किया। नेपोलियन ने अपने शासन काल में निजी संपत्ति की सुरक्षा और नाप-तोल की एक समान दशमलव प्रणाली सम्बन्धी कानून बनाए। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. गिलोटिन किसे कहते हैं? उत्तर: यह दो स्तम्भों और एक फरसे से मिलकर बना एक ऐसा यंत्र है जिसमें फरसा ऊपर से नीचे की ओर आता है ओर नीचे लिटाये गए मृत्युदण्ड प्राप्त व्यक्ति का एक ही बार में सिर धड़ से अलग कर देता है। फ्रांसीसी क्रांति के बाद इस यंत्र का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। प्रश्न 2. आतंक के राज्य से क्या आशय है? उत्तर: फ्रांस में क्रान्ति के बाद अस्तित्व में आयी रोब्सपियर सरकार में कुलीन एवं पादरी, दूसरे राजनीतिक दल के सदस्यों, रोब्सपियर की कार्य-पद्धति से असहमत पार्टी के सदस्यों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया जाता था। इन बंदियों पर क्रान्तिकारी अदालत में मुकदमा चलाया जाता था। दोष सिद्ध होने पर इन लोगों को गिलोटिन पर चढ़ा दिया जाता था। प्रश्न 3. रोब्सपियर सरकार के दो प्रमुख कार्य बताइए। उत्तर: रोब्सपियर सरकार के दो प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-
प्रश्न 4. रोब्सपियर को गिलोटिन पर चढ़ाने का कारण बताइए। उत्तर: रोब्सपियर की कठोर नीतियों को फ्रांस में निर्ममता से लागू किया गया, जिसमें हजारों निर्दोष लोग भी सन्देह में मारे गए। सन् 1794 में न्यायालय द्वारा रोब्सपियर को उत्पीड़ने का दोषी ठहराया गया और बंदी बना लिया गया तथा अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। प्रश्न 5. ‘सोसाइटी ऑफ रेवोल्यूशनरी एण्ड रिपब्लिकन विमेन’ की प्रमुख माँग बताइए। उत्तर: इस क्लब की प्रमुख माँग थी कि फ्रांस के समाज में महिला-पुरुष के बीच लैंगिक आधार पर विभेद न करके उन्हें एक समान माना जाए और समान राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाएँ। प्रश्न 6. नेपोलियन बोनापार्ट का उदय किस प्रकार हुआ? उत्तर: डायरेक्टरी शासन के दौरान फ्रांस में डायरेक्टरी के सदस्यों के मध्य परस्पर झगड़ा विधान परिषदों से होता था और विधान परिषद् डायरेक्टरी को बर्खास्त करने का प्रयास करती थी। डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता नेसेनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उद्भव का मार्ग प्रशस्त किया। प्रश्न 7. फ्रांस के राष्ट्रीय गान को किस नाम से जाना जाता है? उत्तर: फ्रांस के राष्ट्रीय गान को ‘मार्सिले’ नाम से जाना जाता है। प्रश्न 8. जैकोबिन क्लब के नेता का नाम लिखिए। उत्तर मेक्समिलियन रोबेस्प्येर।। प्रश्न 9. फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस पर किस शासक का शासन था? उत्तर: लुईस XVI (सोलहवाँ) का। प्रश्न 10. लुईस सोलहवाँ फ्रांस की राजगद्दी पर कब आसीन हुआ था? उत्तर: 1774 ई. में। प्रश्न 11. लुईस XVI किस राजवंश से संबंधित था? उत्तर: बूबों राजवंश। प्रश्न 12. फ्रांसीसी समाज किन तीन प्रमुख वर्गों में बँटा हुआ था? उत्तर:
प्रश्न 13. धार्मिक करों को किस नाम से जाना जाता था? उत्तर: टाइद। प्रश्न 14. एस्टेट जनरल की बैठक में तीनों वर्गों के कितने-कितने प्रतिनिधि आमंत्रित किए गए थे? उत्तर: प्रथम एस्टेट (300 प्रतिनिधि), द्वितीय एस्टेट (300 प्रतिनिधि)। प्रश्न 15. एस्टेट जनरल की बैठक में किन वर्गों का प्रवेश वर्जित था? उत्तर:
प्रश्न 16. बास्तील का पतन कब हुआ? उत्तर: 14 जुलाई, 1789 ई.। प्रश्न 17. नेशनल असेम्बली ने सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश कब पारित किया? उत्तर: 4 अगस्त, 1789 ई.। प्रश्न 18. त्रिभुज के अन्दर रोशनी बिखेरती आँख किसका प्रतीक है? उत्तर: त्रिभुज के अन्दर रोशनी बिखेरती सर्वदर्शी आँख ज्ञान का प्रतीक है। प्रश्न 19. फ्रांस के राष्ट्रीय रंग कौन-से हैं? उत्तर: प्रश्न 20. प्रारम्भिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए किस तरह के कानून पास किए? उत्तर: सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी (UPBoardSolutions.com) लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया। अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे। प्रश्न 21. 18वीं सदी में फ्रांसीसी समाज कितने एस्टेट्स में बँटा हुआ था? उत्तर: 18वीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा हुआ था-
प्रश्न 22. 18वीं सदी में फ्रांस में किस नए सामाजिक वर्ग का उदय हुआ? उत्तर: मध्यम वर्ग का। प्रश्न 23. एस्टेट जनरल (प्रतिनिधि सभा) की अन्तिम बैठक कब हुई थी? उत्तर: 1614 ई.। प्रश्न 24. ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ नामक पुस्तक किसने लिखी थी? उत्तर: रूसो। प्रश्न 25. जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ्रांस में किस तरह की सरकार स्थापित हुई? उत्तर: जैकोबिन सरकार के पतन के उपरान्त एक नया संविधान लागू किया गया जिसने समाज के संपत्तिहीन नागरिकों को मताधिकार से वंचित रखा। संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका डाइरेक्ट्री को नियुक्त किया जिसे डाइरेक्ट्री शासन कहा गया। प्रश्न 26. तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ किस तरह के कार्य करती थीं? उत्तर: तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ जीविका निर्वाह के लिए काम करती थीं। वे सिलाई, बुनाई, कपड़ों की धुलाई करती थीं, बाजारों में फल-फूल और सब्जियाँ बेचती थीं अथवा संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं। लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. फ्रांस की क्रान्तिकारी महिला ओलिम्प डि गाजेस (1748-1793) के बारे में आप क्या जानते हैं? उत्तर: फ्रांस की क्रान्तिकालीन राजनीति में सक्रिय ओलिम्प सबसे महत्त्वपूर्ण महिला थी। उन्होंने फ्रांस के संविधान नथा ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ का विरोध किया क्योंकि उनमें महिलाओं को मानव मात्र के मूलभूत अधिकारों से वंचित किया गया था। इसलिए उन्होंने 1791 ई. में ‘महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र तैयार किया जिसे महारानी एवं नेशनल असेंबली के सदस्यों पर यह माँग करते हुए (UPBoardSolutions.com) भेजा गया था कि वे इस पर कार्यवाही करें। सन् 1793 में ओलिम्प ने महिला क्लवों को जबरन बंद करने के लिए जैकोबिन सरकार की आलोचना की। उन पर नेशनल कन्वेंशन द्वारा मुकदमा चलाया गया तथा फाँसी पर लटका दिया गया। प्रश्न 2. फ्रांस की क्रान्ति के बाद समता स्थापित करने के लिए रोबेस्प्येर सरकार ने कौन-से नियम बनाए? उत्तर:
प्रश्न 3. फ्रांस में जून, 1793 ई. से जुलाई, 1794 ई. के बीच के कालखण्ड को ‘आतंक का राज्य’ क्यों कहते हैं? उत्तर: फ्रांस में जून, 1793 से जुलाई, 1794 ई. तक के फ्रांसीसी शासन को ‘आतंक का राज्य के नाम से संबोधित किया जाता है। इसके पीछे निम्न तथ्य उत्तरदायी हैं-
प्रश्न 4. जैकोबिन क्लब से आप क्या समझते हैं? उत्तर: जैकोबिन क्लब की शुरुआत क्रान्ति के आरम्भिक समय में ही हो चुकी थी। शुरुआत में जैकोबिन के अनुयायी उदार तथा सुधारवादी ही थे। लेकिन धीरे-धीरे उसकी नीति उग्र होती गयी, फलस्वरूप मिराबो लाफाएत जैसे नरम विचार वाले सदस्य उससे पृथक् ही हो गए। परिणाम यह हुआ कि क्लब पर रोब्सपियर जैसे उग्र विचारक का नियंत्रण हो गया। इस क्लब का नाम पेरिस के भूतपूर्व कान्वेंट ऑफ सेंट जैकब के नाम पर पड़ा। इस क्लब का प्रधान स्थान पेरिस था। इस क्लब के सदस्य लम्बी धारीदार पतलून पहनते थे इसलिए इन्हें ‘सौं कुलॉत’ भी कहा जाता था। इसकी 400 के लगभग शाखाएँ थीं जो सारे देश में फैली हुई थीं। धीरे-धीरे यह क्लब अधिक शक्तिशाली हो गया और उसका प्रभाव इतना बढ़ गया कि फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात् फ्रांस की सत्ता पर जैकोबिनों को नियन्त्रण स्थापित हो गया। प्रश्न 5. कुलीन वर्ग के फ्रांस से पलायन के क्या कारण थे? उत्तर: 14 जुलाई, 1789 ई. को फ्रांस की क्रुद्ध भीड़ बास्तील के किले पर धावा बोलकर उसे नष्ट कर दिया तथा वहाँ के जेल में बन्द कैदियों को मुक्त कर दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अफवाह फैल गयी कि जागीरों के मालिक भाड़े पर लठैतोंलुटेरों के गिरोह बुला लिए हैं जो पकी फसलों को नष्ट करने के लिए निकल पड़े हैं। अनेक जिलों में भय से आक्रान्त किसानों ने कुदालों और बेलचों से ग्रामीण किलों पर आक्रमण कर दिए। किसानों ने अन्न भण्डारों को लूट लिया तथा लगान सम्बन्धी दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया। ऐसी अराजक स्थिति में बड़ी संख्या में कुलीन अपनी जागीरें छोड़कर पलायन कर गए।और उन्होंने पड़ोसी देशों में शरण लेकर अपना जीवन सुरक्षित किया। प्रश्न 6: क्रान्तिकालीन फ्रांस में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए। उत्तर: फ्रांस में सामाजिक परिवर्तन लाने में महिलाओं की उल्लेखनीय भूमिका है। महिलाओं ने अपने जीवन में सुधार लाने के लिए क्रान्तिकारी सरकार पर आवश्यक कदम उठाने के लिए दबाव डाला। तत्कालीन फ्रांसीसी महिलाएँ अपने पतियों एवं परिवार की आर्थिक रूप से सहायता करने के (UPBoardSolutions.com) लिए सिलाई-बुनाई, कपड़े धोने, बाजार में फूल, फल तथा सब्जियाँ बेचने का कार्य करती थीं। अपनी स्थिति में सुधार तथा इस पर चर्चा झुरने के लिए उन्होंने अनेक राजनैतिक क्लब एवं अखबार शुरू किए तथा कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए, जो इस प्रकार हैं-
प्रश्न 7. फ्रांस की क्रान्ति का फ्रांस पर प्रभाव बताइए। उत्तर: फ्रांस की क्रान्ति के फ्रांस पर निम्न महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े-
प्रश्न 8. फ्रांस के 1791 ई. के संविधान की विशेषता बताइए। उत्तर:
प्रश्न 9. फ्रांस में सेंसरशिप की समाप्ति का प्रभाव बताइए। उत्तर: 1789 ई. में बास्तील के पतन के बाद जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह ‘सेंसरशिप की समाप्ति’ से सम्बन्धित था। इसके प्रभाव का विवरण इस प्रकार है-
प्रश्न 10. 18वीं सदी से पहले फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास-प्रथा का उल्लेख कीजिए। उत्तर: 18वीं सदी से पहले फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा इस प्रकार थी-(1) दास-व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ। फ्रांसीसी सौदागर बोर्दै और नान्ते बंदरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे। दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डालकर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लम्बी समुद्री-यात्रा के लिए जहाजों में ढूंस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान-मालिकों को बेच दिया जाता था। दास-श्रुम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोर्दे और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास-व्यापार के कारण। ही समृद्ध नगर बन गए। (2) फ्रांसीसी उपनिवेशों में से कैरिबिआई उपनिवेश-मार्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगों-तंबाकू, नील, चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे। अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था–बागानों में श्रम की कमी। इस कमी को यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास-व्यापार द्वारा पूरा किया गया। प्रश्न 11. फ्रांस में दास प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ? उत्तर: फ्रांस में दास प्रथा का उन्मूलन निम्न प्रकार हुआ-
प्रश्न 12. 18वीं सदी के फ्रांस में महिलाओं की स्थिति स्पष्ट कीजिए। उत्तर: 18वीं सदी के फ्रांस में महिलाओं की स्थिति निम्न प्रकार थी-
प्रश्न 13. फ्रांस में व्याप्त आर्थिक तनाव क्रान्ति में किस प्रकार सहायक बना? उत्तर: लुई सोलहवाँ 1774 ई. में फ्रांस का राजा बना। उस समय फ्रांस का राजकोष रिक्त था। सेना का रखरखाव, दरबार का खर्च, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने जैसे अपने नियमित खर्च निपटाने के लिए सरकार कर बढ़ाने पर बाध्य हो गई। कर बढ़ाने के प्रस्ताव को पारित करने के लिए फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 ई. को एस्टेट्स के जनरल की सभा बुलाई। प्रत्येक एस्टेटस को सभा में एक वोट डालने की अनुमति दी गई। तृतीय एस्टेट्स ने इस अन्यायपूर्ण प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने सुझाव रखा कि प्रत्येक सदस्य का एक वोट होना चाहिए। सम्राट ने इस अपील को ठुकरा दिया तथा तृतीय एस्टेट्स के प्रतिनिधि सदस्य विरोधस्वरूप सभा से वाक आउट कर गए। फ्रांसीसी जनसंख्या में भारी बढ़ोत्तरी के कारण इस समय खाद्यान्न की माँग बहुत बढ़ गई थी। परिणामस्वरूप, (UPBoardSolutions.com) पावरोटी’ (अधिकतर लोगों के भोजन को मुख्य भाग) के भाव बढ़ गए। बढ़ती कीमतों व अपर्याप्त मजदूरी के कारण अधिकतर जनसंख्या जीविका के आधारभूत साधन भी वहन नहीं कर सकती थी। इससे जीविका संकट उत्पन्न हो गया तथा अमीर और गरीब के मध्य दूरी बढ़ गई। प्रश्न 14. फ्रांस में जीविका संकट किन परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ? उत्तर: फ्रांस की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही थी। फ्रांस की जनसंख्या 1715 ई. में 2 करोड़ 30 लाख से बढ़कर 1789 ई. में 2 करोड़ 80 लाख हो गयी। फलस्वरूप इससे खाद्यान्न की माँग बहुत तेजी से बढ़ी। इसलिए पावरोटी की कीमत भी तेजी से बढ़ी क्योंकि यह आम आदमी का भोजन थी। बहुत से कामगार कारखानों में मजदूर का काम करते थे जिनके मालिक उनकी मजदूरी निर्धारित करते थे। किन्तु उनकी (UPBoardSolutions.com) मजदूरी बढ़ती कीमतों के हिसाब से नहीं बढ़ रही थी। इसलिए अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ गई। जब कभी अकाल पड़ता या ओलावृष्टि होती तो फसल कम होने से स्थिति और बिगड़ जाती। इससे जीविका संकट पैदा हुआ। प्रश्न 15. फ्रांसीसी क्रान्ति में दार्शनिकों का योगदान बताइए। उत्तर: फ्रांसीसी क्रान्ति में दार्शनिकों की भूमिका को हम निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. फ्रांसीसी क्रान्ति की शुरुआती घटनाओं का विश्लेषण कीजिए। उत्तर: (i) एस्टेट्स जनरल की बैठक- 5 मई, 1789 ई. को फ्रांस के शासक लुई सोलहवें ने नए करों के प्रस्ताव को 1614 ई. में निर्धारित संगठन के आधार पर वर्साय के महल में एस्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई। इस सभा में प्रथम और द्वितीय एस्टेट के 300-300 प्रतिनिधि और तृतीय एस्टेट के 600 प्रतिनिधियों को बुलाया गया। मतदान की प्राचीन पद्धति के अनुसार एस्टेट के प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार दिया गया था लेकिन लुई सोलहवाँ लोकतांत्रिक सिद्धान्त के आधार पर एक व्यक्ति एक मत’ को अपनाने के स्थान पर (UPBoardSolutions.com) कुलीन-वर्ग और साधारण वर्ग की माँगों के बीच समझौता कराना चाहता था। लुई चाहता था कि वित्तीय प्रश्न पर एक व्यक्ति एक मत’ का सिद्धान्त अपनाया जाए तथा अन्य माँगों पर वर्ग के आधार पर मतदान का सिद्धान्त अपनाया जाए। (ii) राष्ट्रीय सभा की स्थापना- 6 मई, 1789 ई. को राष्ट्रीय सभा की बैठक के दूसरे दिन यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि तीन एस्टेट के सदस्य अलग-अलग भवनों में मतदान करेंगे या एक साथ एक भवन में मतदान करेंगे। सर्वसाधारण वर्ग ने अलग बैठने से मना कर दिया। सरकार ने इस गतिरोध को समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया। अंततः सर्वसाधारण वर्ग के प्रतिनिधियों ने स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। क्रमशः कुलीन व पादरी वर्ग के लोग राष्ट्रीय सभा में सम्मिलित हो गए। अंततः 26 जून को लुई सोलहवें ने विवश होकर कुलीन वर्ग का सर्वसाधारण वर्ग के साथ बैठक का आदेश जारी कर दिया। (iii) संविधान का प्रारूप- राष्ट्रीय सभा ने संविधान का प्रारूप तैयार कर दिया जिसका प्रमुख उद्देश्य सम्राट की शक्तियों को सीमित करना तथा एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना करना था जिसमें शक्तियों को विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका में बाँटा जा सके। (iv) बास्तील का पतन- किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए सम्राट ने पेरिस में सेना को एकत्रित करना आरम्भ कर दिया। सेना को एकत्रित होता देख जन आक्रोश भड़क उठा। पेरिस में आर्थिक असन्तोष को लेकर जगहजगह दंगे भड़क उठे। ये दंगे उस भुखमरी, महँगाई और बेरोजगारी के फलस्वरूप शुरू हुए थे, जो तत्कालीन पेरिस में व्याप्त थी। आक्रोशित जनता ने 14 जुलाई को बास्तील के किले पर धावा बोल दिया। बास्तील का पतन निरंकुश शासन के पतन का प्रतीक था। फ्रांस में प्रत्येक वर्ष 14 जुलाई का दिन राष्ट्रीय (UPBoardSolutions.com) त्योहार के रूप में मनाया जाता है। धीरे-धीरे यह आंदोलन गाँवों में फैल गया। किसानों ने ग्रामीण किलों को नष्ट करके अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया। कुलीन-वर्ग के लोग बड़ी संख्या में दूसरे क्षेत्रों अथवा देशों में पलायन कर गए। (v) संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना- जनता की शक्ति को भाँपते हुए फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने संवैधानिक राजतंत्र को मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हो गई। राष्ट्रीय सभा ने एक आदेश पारित किया जिसके द्वारा धार्मिक करों को समाप्त कर दिया गया, चर्च के स्वामित्व वाली जमीन जब्त कर ली गई, पादरी-वर्ग को उसके विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए विवश किया गया तथा सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया गया। प्रश्न 2. फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस की राजनीतिक स्थिति का विवेचन कीजिए। उत्तर: (i) फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस पर लुई सोलहवें को शासन था। 1774 ई. में अपने पितामह की मृत्यु के बाद वह कठिन परिस्थिति में सिंहासनारूढ़ हुआ, उस समय राजकोष रिक्त था। राजा के ऊपर अत्यधिक ऋण भार था। इस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए जिस योग्यता की आवश्यकता थी, वह लुई में नहीं थी। (ii) दूसरे फ्रांसीसी राजाओं की भाँति उसकी पत्नी मैरी इंटोइनेट का शासन पर अत्यधिक प्रभाव था। उसकी इच्छा शक्ति बड़ी दृढ़ थी, उसमें साहस था और तुरंत निर्णय भी कर सकती थी। इस प्रकार जो गुण राजा में नहीं थे वे उसमें विद्यमान थे परन्तु उसमें भी शासन की समस्याओं को समझने तथा (UPBoardSolutions.com) उनका समाधान करने की योग्यता नहीं थी। उसे अपने आमोद-प्रमोद से मतलब था। वह सदा लोभी, चाटुकारों से घिरी रहती थी जो उस समय की व्यवस्था से लाभ उठाते थे और इसी कारण सुधार के शत्रु थे। वह शासन-कार्य में हस्तक्षेप करती रहती थी, मंत्रियों की नियुक्ति में दखल देती थी और सदा षड्यंत्रों में लगी रहती थी जिसके परिणाम सदा फ्रांस के हित के विपरीत होते थे। इन कारणों से तथा उसके विलासमय जीवन एवं अत्यधिक खर्चीले रहन-सहन से राज्य की कठिनाइयाँ बढ़ती रहीं। इस काल में फ्रांस का शासन भी बड़ा अक्षम, अव्यवस्थित और खर्चीला था। शासन का प्रमुख राजा था। उसकी सहायता के लिए पाँच समितियाँ होती थीं जो कानून बनाती थीं, राज्यादेश निकालती थीं और राज्य का समस्त (iii) तत्कालीन फ्रांस के प्रांतीय शासन को दो प्रकार के प्रांतों में बाँटा गया था। एक प्रकार के प्रांत गवर्नमेंट कहलाते थे, जिनकी संख्या 40 थी। इनमें से अधिकांश फ्रांस के प्राचीन प्रांत थे। इनका शासन में कोई सहभागिता नहीं था। इन प्रांतों के गवर्नर उच्च वर्ग के कुलीन लोग होते थे। ये लोग अधिक वेतन पाते थे और राजा के सानिध्य में ऐशो-आराम की जिन्दगी व्यतीत करते थे। (iv) शासन का वास्तविक कार्य फ्रांस के 36 अन्य प्रान्त करते थे, जिन्हें जेनरेलिटी कहते थे। प्रत्येक जेनरेलिटी में राजा द्वारा नियुक्त एक कर्मचारी होता था जिसे इंटेंडेट कहते थे। ये कर्मचारी मध्यम वर्ग के लोग होते थे तथा राजा के आदेशों का पालन करते थे। इन्हें जन आकांक्षाओं की ओर ध्यान (UPBoardSolutions.com) देने की स्वतंत्रता नहीं थी। इसलिए ये अपने अधीन काम करने वालों में बहुत अलोकप्रिय होते थे। (v) सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि पहुँच के आधार पर होती थी। स्थानीय स्वशासन की कोई व्यवस्था नहीं थी। (vi) स्थानीय कर्मचारियों को भी छोटी-छोटी बातों के लिए केन्द्र से आदेश प्राप्त करना पड़ता था। इस तरह शासन में जनता की भूमिका नगण्य थी। इसी के परिणामस्वरूप क्रांति के समय जब जनता ने शासन-सूत्र अपने हाथ में लिया तो अनेक गल्तियाँ भी कीं। प्रश्न 3. फ्रांस के नए संविधान में शक्तियों का विभाजन किस प्रकार किया गया था? स्पष्ट कीजिए। उत्तर: फ्रांस में नया संविधान बनाने के लिए राष्ट्रीय सभा ने 6 जुलाई, 1789 को एक समिति गठित की थी। इस नवनियुक्त समिति ने दो आधार पर संविधान तैयार किया-(i) जनता की प्रभुता और (ii) शक्ति विभाजन। इस तरह संविधान पर मांटेस्क्यू का प्रभाव स्पष्ट था। संविधान में शक्तियों का विभाजन-
(1) विधायिका- नए संविधान के अन्तर्गत एक सदनीय विधान सभा की स्थापना की गयी। इसमें प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित 745 सदस्य रखे गए, जिनका कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया। निर्वाचन के लिए नागरिक दो भागों में विभक्त किए गए। जिन नागरिकों की अवस्था कम से कम 25 वर्ष की थी, जो कम से कम 3 दिन की आय कर के रूप में देते थे और जिनके नाम नगरपालिका के रजिस्टरों में तथा राष्ट्रीय रक्षक-दल में दर्ज थे वे सक्रिय नागरिकों की श्रेणी में रखे गए, शेष निष्क्रिय नागरिक रहे। सक्रिय नागरिक प्रति सौ (UPBoardSolutions.com) नागरिकों के लिए एक फ्रांसीसी क्रान्ति निर्वाचक चुनते थे और इन निर्वाचकों का ‘निर्वाचक-मंडल’ प्रतिनिधि चुनता था। निर्वाचक के लिए यह आवश्यक था कि वह संपत्ति का स्वामी हो और वर्ष में 10 दिन की आय कर के रूप में देता हो। प्रतिनिधि कोई भी सक्रिय नागरिक चुना जा सकता था, उसके लिए भूमि का स्वामी होना और 54 फ्रैंक कर के रूप में देना आवश्यक था। परन्तु न्यायिक अथवा प्रशासनिक पद पर नियुक्त कोई भी व्यक्ति विधान-सभा का सदस्य नियुक्त नहीं हो सकता था। इस विधान सभा को कानून-निर्माण के पूर्ण अधिकार थे। उस पर एकमात्र नियंत्रण राजा के ‘स्थगनकारी निषेध’ (सस्पेंशन वीटो) का था। राजा किसी भी कानून को दो सत्रों के लिए स्वीकार करने से इनकार कर सकता था, परन्तु उसका यह अधिकार आर्थिक बातों में लागू नहीं होता था। (2) कार्यपालिका- कार्यपालिका प्रमुख के रूप में राजा का अस्तित्व बना रहा। उसे मंत्रियों की नियुक्ति, सेना का नेतृत्व एवं विदेश नीति को निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विधान सभा उसके प्रभाव से पूरी तरह मुक्त थी। वह विधानसभा के अधिवेशन आमंत्रित नहीं कर सकता था, न उसे भंग कर सकता था और न ही उसके सामने कानून के प्रस्ताव ही प्रस्तुत कर सकता था। उसे केवल स्थगनकारी निषेध का अधिकार मिला। न्यायालयों तथा न्यायाधीशों पर भी उसका कोई अधिकार नहीं रहा। उसके मंत्री विधानसभा (UPBoardSolutions.com) के सदस्य नहीं हो सकते थे और इस तरह उन पर सभा का कोई नियंत्रण नहीं था। इस प्रकार राष्ट्रीय सभा ने इंग्लैण्ड का अनुकरण करके सांविधानिक एकतंत्र स्थापित किया, परन्तु इसके साथ मांटेस्क्यू के सिद्धान्त तथा अमेरिका के उदाहरण के अनुसार कार्यपालिका और विधायिका का परस्पर कोई संबंध नहीं रखा। (3) न्यायपालिका- फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने देश में प्रचलित प्राचीन न्याय-व्यवस्था के स्थान पर नए केन्द्रीय एवं स्थानीय न्यायालयों का निर्माण किया। इन न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए सक्रिय न्यायाधीशों द्वारा निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। मुद्रायुक्त पत्रों का चलन अवरुद्ध कर दिया गया (UPBoardSolutions.com) और जूरी द्वारा मुकदमे पर विचार करने की व्यवस्था की गयी। प्रश्न 4. पुरुष एवं नागरिक घोषणा-पत्र के प्रमुख बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए। उत्तर:
प्रश्न 5. फ्रांस में राजतंत्र का अन्त एवं गणतन्त्र की स्थापना किस प्रकार हुई? उत्तर: 1791 ई. में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने संविधान का पूर्ण प्रपत्र तैयार किया। संविधान द्वारा राजा के अधिकार सीमित करते हुए शासन की शक्तियाँ विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में वितरित की गयीं। इस प्रकार फ्रांस को संवैधानिक राजतंत्र में रूपांतरित किया गया। संविधान का प्रारम्भ (UPBoardSolutions.com) पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा के साथ हुआ जिन्हें नैसर्गिक एवं अहरणीय रूप में स्थापित किया गया जिन्हें कोई नहीं छीन सकता था। यह सरकार का कर्तव्य था कि वह प्रत्येक नागरिक के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे। यद्यपि लुई सोलहवें ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे बथापि उसने प्रशा के राजा से गुप्त समझौता कर लिया। इससे पहले कि लुई सोलहवाँ सन् 1789 की गर्मियों से चली आ रही घटनाओं को दबाने की अपनी योजनाओं पर अमल कर पाता, राष्ट्रीय सभा ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया। जनसंख्या के बड़े वर्गों का यह विश्वास था कि क्रांति को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी क्योंकि 1791 ई. के संविधान ने धनी वर्ग को ही राजनैतिक अधिकार प्रदान किए थे। राजनैतिक क्लब उन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण बैठक स्थल बन गए जो सरकार की नीतियों पर चर्चा करना चाहते थे और अपनी रणनीति की योजना बनाई जाती थी। इनमें से एक जैकोबिन क्लब था। जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध वर्ग से सम्बन्ध रखते थे जैसे कि छोटे दुकानदार, कारीगर, जूते बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले, नौकर तथा दैनिक (UPBoardSolutions.com) मजदूर आदि। उनके नेता का नाम मैक्समिलियन रोब्सपियर था। इन जैकोबिन लोगों को सौं कुलॉत के नाम से जाना जाने लगा। सौं कुलॉत लोग इसके अतिरिक्त एक लाल टोपी भी पहनते थे जो आजादी का प्रतीक थी। 1792 ई. की गर्मियों में जैकोबिन लोगों ने प्रशा के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनाई जो कि कम आपूर्ति एवं खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों से गुस्साए हुए थे। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर आक्रमण कर दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और स्वयं राजा को घण्टों तक बंधक बनाए रखा। बाद में सभा ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। चुनाव कराए गए तथा तब से 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी पुरुष, चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं, सभी को वोट डालने का अधिकार मिल गया। फ्रांस में नवनिर्वाचित सभा को कन्वेंशन नाम दिया गया। 21 सितम्बर, 1792 ई. को फ्रांस गणतन्त्र घोषित कर दिया गया। इसी के साथ फ्रांस में वंशानुगत राजतंत्र का अन्त हो गया। (UPBoardSolutions.com) न्यायालय ने राजद्रोह के आरोप में लुई सोलहवें कों मृत्युदण्ड की सजा सुनाई। प्लेस डी ला कन्कोर्ड में 21 जनवरी, 1793 ई. को लुई सोलहवें को फाँसी दे दी गयी और इसके बाद रानी मैरी इंटोइनेट को भी फाँसी दे दी गयी। प्रश्न 6. ओलिम्प डि गॉजेस के घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूल अधिकारों का वर्णन कीजिए। उत्तर: ओलिम्प डि गाँजेस के घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूल अधिकारों का वर्णन इस प्रकार है-
प्रश्न 7. फ्रांस की क्रान्ति के बाद महिलाओं की स्थिति में आए परिवर्तनों का विवेचन कीजिए। उत्तर: फ्रांस की क्रान्ति के बाद महिलाओं की स्थिति में निम्न परिवर्तन घटित हुए- (i) फ्रांस में आतंक के राज के दौरान देश में सक्रिय महिला अधिकारों के प्रति चेतना का प्रसार करने वाले क्लबों को | बन्द कर दिया गया। साथ ही महिलाओं की राजनीतिक गतिविधियों पर अंकुश लगा दिया गया। अनेक राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं को बन्दी बनाया गया तथा उनमें से कुछ को मृत्युदण्ड दे दिया गया। (ii) मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। (iii) फ्रांस की क्रांति के काल में ही महिलाओं ने अपने अधिकारों की माँग को लेकर अनेक महिला राजनीतिक क्लबों की स्थापना आरम्भ कर दी थी। ‘द सोसाइटी ऑफ रेवलूशनरी एण्ड रिपब्लिकन विमेन’ सबसे मशहूर क्लब था। उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। महिलाएँ इस बात से निराश हुईं कि 17 ई. के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। महिलाओं ने मताधिकार, असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी। उनका (iv) प्रारम्भिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए। सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया। अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे। शादी को स्वैच्छिक अनुबन्ध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा। (UPBoardSolutions.com) तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द-औरत दोनों को ही इसकी अर्जी देने का अधिकार दिया गया। अब महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार प्रश्न 8. फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए प्रथम एस्टेट का उत्तरदायित्व सिद्ध कीजिए। उत्तर: फ्रांस में प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग को शामिल किया जाता था। इस वर्ग में एक लाख तीस हजार के लगभग पादरी थे और इनका देश की 10 प्रतिशत भूमि पर नियंत्रण था। चर्च भी किसानों से टाइद (धार्मिक कर) नामक कर वसूलता था। इन्हें सरकारी करों से मुक्ति प्राप्त थी। साथ ही चर्च राज्य को दिए जाने वाले पंचवर्षीय अनुदान के द्वारा सरकार पर वित्तीय दबाव डालने की स्थिति में थे। फ्रांस की शिक्षा पद्धति, प्रचार के साधन तथा नैतिक व अनैतिक में अन्तर करने का अधिकार भी उन्हीं के हाथ में था। फ्रांस का चर्च 18वीं सदी में बहुत अधिक बदनाम तथा अलोकप्रिय हो गया था। इस अलोकप्रियता के कारण पादरियों के व्यक्तिगत चरित्र, एवं जीवन से कम तथा तत्कालीन ऐतिहासिक परिस्थितियों से अधिक संबद्ध थे। व्यक्तिगत तौर पर आम पादरी का आचरण अपने युग के अनुकूल ही था, उससे बुरा नहीं। लोगों की नजरों में खटकने वाली बात तो यह थी कि चर्च की बढ़ती हुई सम्पदा के साथ पादरी अपने धार्मिक (UPBoardSolutions.com) कर्तव्यों की उपेक्षा करते जा रहे थे। चर्च की अलोकप्रियता का एक मुख्य कारण फ्रांस, विशेषकर उसके नगरों तथा मध्यम-वर्ग के व्यक्तियों में लोकप्रिय होती हुई संशयवाद की प्रवृत्ति थी जिसके प्रभाव में ईश्वर का अस्तित्व तथा चर्च की उपयोगिता दोनों ही विवाद का विषय बन गए थे। एक दूसरा कारण चर्च के सामंतीय अधिकार तथा उनका कठोरता के साथ लागू किया जाना था, जिसके कारण किसानों में उसके विरुद्ध असंतोष उत्पन्न होता रहा। अन्त में पादरीवर्ग के अन्दर ही एकता को अभाव था। चर्च के उच्च पदों पर कुलीन-वर्ग के वंशजों का एकाधिकार था और इससे छोटे पादरियों में असंतोष बढ़ा तथा वे चर्च के प्रजातंत्रीय स्वरूप की स्थापना हेतु उत्सुक हो रहे थे। प्रश्न 9. फ्रांस का मध्यम वर्ग तत्कालीन व्यवस्था से क्यों असन्तुष्ट था? स्पष्ट कीजिए। उत्तर: तत्कालीन फ्रांस के मध्यम वर्ग में लेखक, डॉक्टर, वकील, जज, अध्यापक और असैनिक अधिकारी जैसे शिक्षित व्यक्ति तथा व्यापारी, बैंकर और कारखाने वाले धनी व्यक्ति सम्मिलित थे। समाज में इस वर्ग का आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व था। मध्यम वर्ग उन लोगों का अग्रगामी था, जिन्होंने 19वीं सदी में आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।मध्यम वर्ग तत्कालीन व्यवस्था से निम्न कारणों से असन्तुष्ट था- (i) कुलीन-वर्ग के साथ ही तत्कालीन शासन-पद्धति से भी मध्यम-वर्ग के औद्योगिक एवं व्यावसायिक अंग को शिकायत थी। समाज का यह वर्ग मात्र एक उद्देश्य लेकर चल रहा था–भौतिक सम्पत्ति की वृद्धि; किन्तु तत्कालीन शासन उसके इस उद्देश्य की पूर्ति में अपनी गलत नीतियों के कारण बाधक सिद्ध हो रहा था। (ii) मध्यम-वर्ग का बुद्धिजीवी भाग आदर्श भावना से भी प्रेरित था। यह आदर्श था विवेक एवं बुद्धि पर आधारित समाज की संरचना जिसमें सभी कुछ तर्कसंगत हो। (iii) इतिहास में व्यापारियों-उद्योगपतियों के ये समूह बिलकुल नए थे, किन्तु अमेरिका के फ्रांसीसी उपनिवेशों से व्यापार करने के कारण ये बहुत धनी हो गए थे और इनका महत्त्व बहुत बढ़ गया था। इनमें से कुछ ने जमीन खरीद ली थी और उनके पास बड़ी-बड़ी जमींदारियाँ हो गई थीं। इन व्यक्तियों के पास पर्याप्त धन था, इसलिए राज्य, पादरी और अभिजात-वर्ग सभी इनके ऋणी थे। सामाजिक दृष्टि से वह स्तर पर आधारित श्रेणीबद्ध समाज के विरोधी न होकर समर्थक ही थे और उनकी महत्त्वाकांक्षा थी कि सामाजिक सीढ़ी की ऊँची पदान पर उन्हें स्थान मिले किन्तु रक्त के आधार पर श्रेणीबद्ध फ्रेंच समाज में कुलीन-वर्ग ने उस स्थान से उन्हें वंचित कर रखा था। इस प्रकार 18वीं शताब्दी का फ्रेंच बुर्जुआ (मध्यम-वर्ग) अपने को एक अजीब स्थिति में पाता था। उसके पास धन था, उसके पास (UPBoardSolutions.com) योग्यता थी किन्तु इस धन और योग्यता के अनुरूप समाज में प्रतिष्ठा नहीं थी, सरकारी पद नहीं थे। इस विषमता को तभी दूर किया जा सकता था जब सामंतीय समाज के ढाँचे को नष्ट कर दिया जाए। प्रश्न 10. क्रांति से पहले की फ्रांस की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण कीजिए। उत्तर: क्रान्ति ( 1789 ) से पहले फ्रांस की आर्थिक स्थिति- फ्रांस की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कठिन दौर से गुजर रही थी, ऐसे में सरकार की फिजूलखर्ची ने दशा को और भी शोचनीय बना दिया। उस समय फ्रांस में कर दो प्रकार के थेप्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष कर (टाइल) जायदाद, व्यक्तिगत संपत्ति तथा आय पर लिए जाते थे। कुलीन वर्ग और पादरी इनमें से कुछ करों से तो बिल्कुल मुक्त थे और शेष करों से प्रायः मुक्त थे, क्योंकि कर निर्धारण करने वाले राज्य-कर्मचारी डरकर उन पर नाममात्र का कर लगाया करते थे। उसकी सारी कमी शेष जनता पर कर लगाकर पूरी की जाती थी और इस प्रकार उस पर करों का अत्यधिक भार था। कुलीन-वर्ग और पादरी भी सम्पन्न थे, रुपये में तीन आने भी कर नहीं देते थे जबकि मध्यमवर्ग के व्यक्ति से प्रायः दस गुना कर वसूल लिया जाता था। परोक्ष करों में मुख्य रूप से नमक, शराब, तंबाकू आदि पर लिए जाने वाले कर थे। दूषित कर-व्यवस्था के फलस्वरूप राज्य जनता की सम्पत्ति का राष्ट्रीय कामों के लिए उपयोग नहीं कर सकता था। उसकी वाणिज्य-नीति भी ऐसी थी जिसमें राज्य में सम्पत्ति की उत्पत्ति भी पूरी तरह न हो पाती थी। फ्रेंच व्यापार अभी पूरी तरह से उन्नति नहीं कर पाया था। इस दोषपूर्ण अर्थ-व्यवस्था का परिणाम यह निकला कि राज्य का व्यय सदैव ही उसकी आय से अधिक रहा था तथा इस घाटे की पूर्ति हेतु सरकार को ऋण का आश्रय लेना पड़ा। अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को (UPBoardSolutions.com) और अधिक गंभीर बना दिया। अगर इस संघर्ष में सम्मिलित होने के समय को फ्रांस सरकार के संकट का प्रारम्भ-बिन्दु माना जाए तो अत्युक्ति न होगी। इस संघर्ष की सफल समाप्ति ने फ्रांस में स्वतंत्रता की भावना को बल ही प्रदान नहीं किया अपितु उसका आर्थिक भार सरकार के लिए एक असह्य बोझ सिद्ध हुआ जिसे सम्हाल न सकने के कारण वह टूटकर बिखर गई। Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 1 are helpful to complete your homework. 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