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जीवन परिचय- गोस्वामी तुलसीदास का जन्म बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन 1532 में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों मानते हैं। इनका बचपन कष्ट में बीता। बचपन में ही इन्हें माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। गुरु नरहरिदास की कृपा से इनको रामभक्ति का मार्ग मिला। इनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ। कहते हैं कि रत्नावली की फटकार से ही वे वैरागी बनकर रामभक्ति में लीन हो गए थे। विरक्त होकर ये काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि तीर्थों पर भ्रमण करते रहे। इनका निधन काशी में सन 1623 में हुआ। काव्यगत विशेषताएँ- गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि हैं। ये लोकमंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह तथ्य न सिर्फ़ उनकी काव्य-संवेदना की दृष्टि से, वरन काव्यभाषा के घटकों की दृष्टि से भी सत्य है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि शास्त्रीय भाषा (संस्कृत) में सर्जन-क्षमता होने के बावजूद इन्होंने लोकभाषा (अवधी व ब्रजभाषा) को साहित्य की रचना का माध्यम बनाया। तुलसीदास में जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की अचूक समझ है। यह विशेषता उन्हें महाकवि बनाती है। ‘रामचरितमानस’ में प्रकृति व जीवन के विविध भावपूर्ण चित्र हैं, जिसके कारण यह हिंदी का अद्वतीय महाकाव्य बनकर उभरा है। इसकी लोकप्रियता का कारण लोक-संवेदना और समाज की नैतिक बनावट की समझ है। इनके सीता-राम ईश्वर की अपेक्षा तुलसी के देशकाल के आदशों के अनुरूप मानवीय धरातल पर पुनः सृष्ट चरित्र हैं।भाषा-शैली- गोस्वामी तुलसीदास अपने समय में हिंदी-क्षेत्र में प्रचलित सारे भावात्मक तथा काव्यभाषायी तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें भाव-विचार, काव्यरूप, छंद तथा काव्यभाषा की बहुल समृद्ध मिलती है। ये अवधी तथा ब्रजभाषा की संस्कृति कथाओं में सीताराम और राधाकृष्ण की कथाओं को साधिकार अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं। उपमा अलंकार के क्षेत्र में जो प्रयोग-वैशिष्ट्य कालिदास की पहचान है, वही पहचान सांगरूपक के क्षेत्र में तुलसीदास की है। कविताओं का प्रतिपादय एवं सार(क) कवितावली (उत्तरकांड से)प्रतिपादय-कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है। (ख) लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप प्रतिपादय- यह अंश ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया है जब लक्ष्मण शक्ति-बाण लगने से मूर्चिछत हो जाते हैं। भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत्त हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वरीय राम का पूरी तरह से मानवीकरण कर देता है, जिससे पाठक का काव्य-मर्म से सीधे जुड़ाव हो जाता है। इस घने शोक-परिवेश में हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाना कवि को करुण रस के बीच वीर रस के उदय के रूप में दिखता है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (क) कवितावली1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट, ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।। ‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें, आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।। (पृष्ठ-48)[CBSE Sample Paper, 2013; (Outside) 2011 (C)] शब्दार्थ-किसबी-धंधा। कुल- परिवार। बनिक- व्यापारी। भाट- चारण, प्रशंसा करने वाला। चाकर- घरेलू नौकर। चपल- चंचल। चार- गुप्तचर, दूत। चटकी- बाजीगर। गुनगढ़त- विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत- घूमता। अखटकी- शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन- दिन। करम-कार्य। अधरम- पाप। बुझाड़- बुझाना, शांत करना। घनश्याम- काला बादल। बड़वागितें- समुद्र की आग से। आग येट की- भूख। (i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है। प्रश्न (क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक काय करते हैं ? उत्तर- (क) पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ? 2. खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस, कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’ बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत, शब्दार्थ-बलि- दान-दक्षिणा। बनिक- व्यापारी। बनिज- व्यापार। चाकर- घरेलू नौकर। चाकरी- नौकरी। जीविका बिहीन- रोजगार से रहित। सदयमान-दुखी। सोच- चिंता। बस- वश में। एक एकन सों- आपस में। का करी- क्या करें। बेदहूँ- वेद। पुरान- पुराण। लोकहूँ- लोक में भी। बिलोकिअत- देखते हैं। साँकरे- संकट। रावरें- आपने। दारिद- गरीबी। दसानन- रावण। दबाढ़- दबाया। दुनी- संसार। दीनबंधु- दुखियों पर कृपा करने वाला। दुरित- पाप। दहन-जलाने वाला, नाश करने वाला। हहा करी-दुखी हुआ। (i) तत्कालीन समाज की बेरोजगारी व अकाल की भयावह स्थिति का चित्रण है। प्रश्न (क) कवि ने समाज के किन-किन वरों के बारे में बताया है? उत्तर- (क) कवि ने किसान, भिखारी, व्यापारी, नौकरी करने वाले आदि वर्गों के बारे में बताया है कि ये सब बेरोजगारी से परेशान हैं। 3. धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ। शब्दार्थ- धूत- त्यागा हुआ। अवधूत– संन्यासी। रजपूतु- राजपूत। जलहा- जुलाहा। कोऊ- कोई। काहू की- किसी की। ब्याहब- ब्याह करना है। बिगार-बिगाड़ना। सरनाम- प्रसिद्ध। गुलामु- दास। जाको- जिसे। रुच- अच्छा लगे। आोऊ- और। खैबो- खाऊँगा। मसीत- मसजिद। सोढ़बो- सोऊँगा। लैंबो-लेना। वैब-देना। दोऊ- दोनों। (i) कवि समाज के आक्षेपों से दुखी है। उसने अपनी रामभक्ति को स्पष्ट किया है। प्रश्न (क) कवि किन पर व्यंग्य करता है और क्यों ? उत्तर- (क) कवि धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले ठेकेदारों पर व्यंग्य करता है, क्योंकि समाज के इन ठेकेदारों के व्यवहार से ऊँच-नीच, जाति-पाँति आदि के द्वारा समाज की सामाजिक समरसता कहीं खो गई है। (ख) लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप दोहा1. तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग। शब्दार्थ- तव-तुम्हारा, आपका। प्रताप-यश। उर-हृदय। राखि-रखकर। जैहऊँ-जाऊँगा। नाथ-स्वामी। अस-इस तरह। आयसु-आज्ञा। पाड़-पाकर। पद-चरण, पैर। बदि-वंदना करके। बहु-भुजा। सील-सद्व्यवहार। गुन-गुण। प्रीति-प्रेम। अयार-अधिक। महुँ-में। सराहत-बड़ाई करते हुए। पुनि- पुनि-फिर-फिर। पवनकुमार-हनुमान। विशेष- (i) हनुमान की भक्ति व भरत के गुणों का वर्णन हुआ है। प्रश्न (क) कवि तथा कविता का नाम बताइए? उत्तर- (क) कवि-तुलसीदास। 2. उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसार।। शब्दार्थ- उहाँ-वहाँ। लछिमनहि- लक्ष्मण को। निहारी- देखा। मनुज- मनुष्य। अनुसारी- समान। अध- आधी। राति- रात। कपि- बंदर (हनुमान)। आयउ-आया। अनुज- छोटा भाई, लक्ष्मण। उर- हृदय। सकटु- सके। दुखित- दुखी। मोह- मुझे। काऊ- किसी प्रकार । तव- तेरा। मृदुल- कोमल। सुभाऊ– स्वभाव। मम- मेरे। हित- भला। तजहु- त्याग दिया। सहेहु- सहन किया। बिपिन- जंगल। हिम- बर्फ । आतप- धूप। बाता- हवा, तूफ़ान। सो- वह। अनुराग- प्रेम। वच- वचन। बिकलाह- व्याकुल। जों- यदि। जनतेऊँ- जानता। बिछोहू- बिछड़ना, वियोग। मनतेऊँ– मानता। अगेहू- उस। (i) राम का मानवीय रूप एवं उनके विलाप का मार्मिक वर्णन है। प्रश्न (क) रात अधिक होते देख राम ने क्या किया? उत्तर- (क) रात अधिक होते देख राम व्याकुल हो गए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। (i) वे राम को दुखी नहीं देख सकते थे। (ग) लक्ष्मण ने राम के लिए अपने माता-पिता को ही नहीं, अयोध्या का सुख-वैभव त्याग दिया। वे वन में राम के साथ रहकर नाना प्रकार की मुसीबतें सहते रहे। 3. सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।। शब्दार्थ- बित-धन। नारि- स्त्री, पत्नी। होहिं- आते हैं। जाहि- जाते हैं। जग- संसार। बारहेिं बार- बार-बार। अस- ऐसा, इस तरह। बिचारि- सोचकर। जिय- मन में। ताता- भाई के लिए संबोधन। सहोदर– एक ही माँ की कोख से जन्मे। भ्राता- भाई। जथा- जिस प्रकार। बिनु- के बिना। दीना-दीन-हीन। मनि- नागमणि। फनि- फन (यहाँ-साँप)। करिबर- श्रेष्ठ हाथी। कर- सूंड़। हीना- से रहित। मम- मेरा। जिवन- जीवन। बंधु- भाई। तोही- तुम्हारे। जौं-यदि। जड़- कठोर। वैव- भाग्य। जिआवै- जीवित रखे। मोही- मुझे। जैहऊँ- जाऊँगा। कवन- कौन। मुहुँ- मुख। हेतु- के लिए। गवाड़- खोकर। बरु- चाहे। अयजस- अपयश। सहतेऊँ- सहन करता। माह- में। बिसेष- खास। छति- हानि, नुकसान। विशेष- (i) राम का भ्रातृ-प्रेम प्रशंसनीय है। प्रश्न (क) काव्यांश के आधार पर राम के व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए। उत्तर- (क) इस काव्यांश में राम का आम आदमी वाला रूप दिखाई देता है। वे लक्ष्मण के प्रति स्नेह व प्रेमभाव को व्यक्त करते हैं तथा संसार के हर सुख से ज्यादा सगे भाई को महत्व देते हैं। 4. अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।। सोरठ प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर। शब्दार्थ- अपलोकु-अपयश। सहाह- सहन कर लेगा। निदुर- कठोर। उर- हृदय। निज- अपनी। जननी- माँ। कुमारा- पुत्र। तात-पिता। तासु-उसके। प्रान अधारा- प्राणों के आधार। साँयेसि- सौपा था। मोह- मुझे। गहि- पकड़कर। यानी- हाथ। हित- हितैषी। जानी- जानकर। उतरु- उत्तर। काह- क्या। तेहि-उसे। किन- क्यों नहीं। स्त्रवत- चूता है। सलिल- जल। राजिव- कमल। गति- दशा। प्रलाप- तर्कहीन वचन-प्रवाह। विकल- परेशान। निष्कर- समूह। जिमि- जैसे। मँह– में। (i) राम की व्याकुलता का सजीव वर्णन है। (viii) ‘राजिव दल लोचन’ में रूपक अलंकार है। प्रश्न (क) व्याकुल श्रीराम अपना दुख कैसे प्रकट कर रहे हैं? उत्तर- (क) व्याकुल श्रीराम आपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि वे कठोर हृदय से लक्ष्मण के वियोग व अपयश को सहन कर लेंगे, परंतु अयोध्या में सुमित्रा माता को क्या जवाब देंगे। 5. हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।। शब्दार्थ- हरषि-खुश होकर। भेटेउ- गले लगाकर प्रेम प्रकट किया। अति- बहुत अधिक। कृतग्य- आभार। सुजाना- अच्छा ज्ञानी, समझदार। बैद- वैद्य। कीन्हि- किया। भ्राता– भाई। हरषे- खुश हुए। सकल- समस्त। ब्रता- समूह, झंड। युनि- दुबारा। ताहि- उसको। लद्ध आवा- लेकर आए थे। (i) लक्ष्मण के ठीक होने पर वानर सेना व राम की खुशी का वर्णन है। प्रश्न (क) हनुमान के आने पर राम ने क्या प्रतिक्रिया जताई ? उत्तर- (क) हनुमान के आने पर राम प्रसन्न हो गए तथा उन्हें गले से लगाया। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। 6. यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।। शब्दार्थ- बृतांत-वर्णन। बिषाद-दुख। सिर धुनेऊ-पछताया। पहिं- पास। बिबिध-अनेक। जतन- उपाय, प्रयास। करि- करके। ताहि- उसे। जगावा-जगाया। निसिचर-राक्षस अर्थात कुंभकरण। कालु- मौत। देह- शरीर। धरि- धारण करके। बैंसा- बैठा। बूद्धा- पूछा। कहु-कहो। काहे-क्यों। तव- तेरा। सुखार्द्र- सूख रहे हैं। (i) रावण के दुख का सुंदर चित्रण किया गया है। प्रश्न (क) रावण ने कॉन-सा वृत्तांत सुना? उसकी क्या प्रतिक्रिया थी? उत्तर- (क) रावण ने लक्ष्मण की मूच्छीँ टूटने का समाचार सुना। यह सुनकर वह अत्यंत दुखी हो गया तथा सिर पीटने लगा। 7. कथा कही सब तेहिं अभिमानी। कही प्रकार सीता हरि आनी।। दोहा सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।। शब्दार्थ- कथा-कहानी। तेहिं- उस। जहि- जिस। हरि- हरण करके। आन- लाए। कपिन्ह- हनुमान आदि वानर। महा महा– बड़े-बड़े। जोधा- योद्धा। संधारे- संहार किया। दुमुख- एक राक्षस का नाम। सुररियु- देवताओं का शत्रु (इंद्रजीत)। मनुज अहारी- नरांतक। भट- योद्धा। अतिकाय- एक राक्षस का नाम। आयर- दूसरा। महोदर- एक राक्षस का नाम। आदिक- आदि। समर- युद्ध। महि- धरती। रनधीर- रणधीर। दसकंधर- रावण। बिलखान- दुखी होकर रोने लगा। जगदंबा- जगत-जननी। हरि- हरण करके। आनि- लाकर। सठ- मूर्ख। कल्यान- कल्याण, शुभ। (i) रावण की व्याकुलता तथा कुंभकरण की वाक्पटुता का पता चलता है। प्रश्न (क) किसने, किसको, क्या कथा सुनाई थी? उत्तर- (क) रावण ने कुंभकरण से सीता-हरण से लेकर अब तक के युद्ध और उसमें मारे गए अपनी सेना के वीरों के बारे में बताया । काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न(क) कवितावलीनिम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट, चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी। पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरी, अटत गहन-गन अहन अखेटकी।। ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेतेकी। ‘तुलसी ‘ बुझाह एक राम घनस्याम ही तें, आगि बढ़वागितें बड़ी हैं आगि पेटकी ।। प्रश्न (क) इन काव्य-पक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ? उत्तर- (क) इस समाज में जितने भी प्रकार के काम हैं, वे सभी पेट की आग से वशीभूत होकर किए जाते हैं।’पेट की आग’विवेक नष्ट करने वाली है। ईश्वर की कृपा के अतिरिक्त कोई इस पर नियंत्रण नहीं पा सकता। • पेट की आग बुझाने के लिए मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों का प्रभावपूर्ण वर्णन है। • काव्यांश कवित्त छंद में रचित है। • ब्रजभाषा का माधुर्य घनीभूत है। • ‘राम घनश्याम’ में रूपक अलंकार है। ‘किसबी किसान-कुल’, ‘चाकर चपल’, ‘बेचत बेटा-बेटकी’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। 2. खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी । कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाड़, क्या करी ?’ साँकरे सबँ पैं, राम रावरें कृपा करी । दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु! दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी ।। प्रश्न (क) किसन, व्यापारी, भिखारी और चाकर किस बात से परेशन हैं? उत्तर- (क) किसान को खेती के अवसर नहीं मिलते, व्यापारी के पास व्यापार की कमी है, भिखारी को भीख नहीं मिलती और नौकर को नौकरी नहीं मिलती। सभी को खाने के लाले पड़े हैं। पेट की आग बुझाने के लिए सभी परेशान हैं। (ख) लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलापनिम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपारा। प्रश्न (क) अनुप्रास अलकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए। उत्तर- (क) अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण– (i) प्रभु पद प्रीति अपार। (ख) काव्यांश में सरस, सरल अवधी भाषा का प्रयोग है। इसमें दोहा छद का प्रयोग है। 2. सुत बित नारि भवन परिवारा । होहि जाहिं ज7 बारह बारा ।। प्रश्न (क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए। उत्तर- (क) विष्णु भगवान के अवतार भगवान श्री राम का मनुष्य के समान व्याकुल होना और राम, लक्ष्मण एवं भरत का यह परस्पर भ्रातृ-प्रेम हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। 3. प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकरा प्रश्न (क) भाषा-प्रयोग की दो विशेषताएँ लिखिए। उत्तर- (क) भाषा-प्रयोग की दो विशेषताएँ हैं- (i) सरस, सरल, सहज, मधुर अवधी भाषा का प्रयोग। (ख) काव्यांश में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर श्री राम एवं वानरों की शोक-संवेदना एवं दुख का वर्णन है। उसी बीच हनुमान के आ जाने से दुख में हर्ष के संचार हो जाने का वर्णन है, क्योंकि उनके संजीवनी बूटी लाने से अब लक्ष्मण के प्राण बच जाएँगे। 4. हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।। प्रश्न (क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए। उत्तर- (क) इसमें राम-भक्त हनुमान की बहादुरी व कर्मठता का, लक्ष्मण के स्वस्थ होने का श्री राम सहित भालू और वानरों के समूह के हर्षित होने का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है। (i) काव्यांश सरल, सहज अवधी भाषा में है, जिसमें चौपाई छंद है। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नपाठ के साथ 1. ‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। अथवा तुलसीदास के कवित्त के आधार पर तत्कालीन समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डालिए। [CBSE (Delhi), 2015, Set-III)] 2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए। 3. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत काँ ज़रूस्त क्यों समझी ? उत्तर- 4. धूत कहीं ’ वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की हैं। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ? अथवा ‘धूत कहीं ……’ ‘छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्त-हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE (Delhi), 2014)] 5. व्याख्या करें- (क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता। जौं जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू। (ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना। अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआवै मोही। (ग) माँगि के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ। (घ) ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी । उत्तर- (ख) मेरी दशा उसी प्रकार हो गई है जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की, सँड़ के बिना हाथी| की होती है। मेरा ऐसा भाग्य कहाँ जो तुम्हें दैवीय शक्ति जीवित कर दे। (ग) तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने तो माँगकर खाया है मस्ती में सोया हूँ किसी का एक लेना नहीं है और दो देने नहीं अर्थात् मैं बिल्कुल निश्चित प्राणी हूँ। (घ) तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे। 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविभव क्यों कहा गया हैं? [CBSE Sample Papler-I, 2008] उत्तर- 8. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गवाई। बरु अपजस सहतेऊँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं। भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित हैं? उत्तर- भाई के शोक में डूबे राम ने कहा कि मैं अवध क्या मुँह लेकर जाऊँगा? वहाँ लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। वे कहते हैं कि नारी की रक्षा न कर पाने का अपयशता में सह लेता, किन्तु भाई की क्षति का अपयश सहना मुश्किल है। नारी की क्षति कोई विशेष क्षति नहीं है। राम के इस कथन से नारी की निम्न स्थिति का पता चलता है।उस समय पुरुष-प्रधान समाज था। नारी को पुरुष के बराबर अधिकार नहीं थे। उसे केवल उपभोग की चीज समझा जाता था। उसे असहाय व निर्बल समझकर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाई जाती थी। पाठ के आस-पास 1. कालिदास के ‘रघुवंश’ महाकाव्य में पत्नी (इंदुमत) के मृत्यु-शोक पर अज तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें। 2. ‘पेट ही को यचत, बेचत बेटा-बेटकी’तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य हैं/ भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वतमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। 3. तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं ? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचचा करें। 4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य करके ऐसा क्यों कहा—‘मिलह न जगत सहोदर भ्राता’2 इस पर विचार करें। 5. यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित, सवैया-ये पाँच छद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ। तुलसी ने इसके अतिरिक्त जिन छंदों का प्रयोग किया है उनमें छप्पय, झूलना मतंगयद, घनाक्षरी वरवै, हरिगीतिका, चौपय्या, त्रिभंगी, प्रमाणिका तोटक और तोमर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। काव्य रूप-तुलसी ने महाकाव्य, प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्यों की रचना की है। इसीलिए अयोध्यासिंह उपाध्याय लिखते हैं कि “कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।” इन्हें भी जानें चौपाई- चौपाई सम-मात्रिक छंद है जिसके दोनों चरणों में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोक-प्रसिद्ध है। दोहा- दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है। सोरठा- दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है। कवित्त- यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है। सवैया- चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7 भगण + 2 गुरु (33) के क्रम के होते हैं। अन्य हल प्रश्नलघूत्तरात्मक प्रश्न 1. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ काव्या’श के आधार पर आव्रर्शाक में बेचैन राय कौ दशा को अपने शब्दों में प्रस्तुत काँजिए । अथवा ‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। [CBSE (Outside), 2008)] 2. बेकारी की समस्या तुलसी के जमाने में भी थी, उस बेकारी का वर्णन तुलसी के कवित्त के आधार पर कीजिए। अथवा तुलसी ने अपने युग की जिस दुर्दशा का चित्रण किया हैं, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। 3. तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए। 4. तुलसी युग की आर्थिक स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन र्काजिए। 5. लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम क्या सोचने लगे? 6. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए। 7. कुंभकरण ने रावण को किस सच्चाई का आइना दिखाया? 8. नीचे लिख काव्य-खड को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए: [CBSE (Delhi), 2014] सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।
अस विचारि जियें जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता। (क) काव्याशा में प्रयुक्त भाषा एव छद का नाम लिखिए। उत्तर- (क) काव्यांश में प्रयुक्त भाषा सरस, सरल अवधी तथा छद चौपाई है। (i) होहि जाहि जग बारहि बारा। (ग) काव्यांश में लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम की व्याकुलता एवं दुख का वर्णन है। वे जगत में सहोदर भाई फिर न मिल पाने की बात कहकर उठ जाने के लिए कह रहे हैं। 9. कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा? [CBSE (Delhi), 2015)] उत्तर- कुंभकरण के पूछने पर रावण ने उसे अपनी व्याकुलता के बारे में विस्तारपूर्वक बताया कि किस तरह उसने माता संकण किया कि उसे बताया कि हानुमान ने सवागस मारडले हैं औ महान यथाओं का साहार कर दिया है। उसकी ऐसी बातें सुनकर कुंभकरण ने उससे कहा कि अरे मूर्ख! जगत-जननी को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है। यह संभव नहीं है। स्वयं करें
(ब) सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान। जगदंबा हरि आनि अब, सठ चाहत कल्याण।॥ (क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। (ख) अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए। (ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए। More Resources for CBSE Class 12: NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience |